Thursday, February 5, 2015

चाहत तुम्हारी फिर से


(5 फरवरी, जन्मदिन पर )

"चाहत तुम्हारी फिर से"

चाहत तुम्हारी फिर से मुझको सजा दिया  
सोई हुई थी आशा उसको जगा दिया

कहने को जब नहीं थे, सोहबत नसीब थी 
खोजा जहाँ मैं दिल से, चेहरा दिखा दिया 

ढूँढ़े जिसे निगाहें उजडा वही चमन था 
देखा गुलाब सूखा लगता चिढ़ा दिया 

चाहत किसे कहेंगे, तबतक समझ नही थी 
जब चाहने लगे तो उसने रुला दिया 

नव कोपलों के संग में कलियाँ खिले कुसुम की
खुशबू, पराग सब कुछ तुम पर लुटा दिया 

-कुसुम ठाकुर-

1 comment:

गीतिका वेदिका said...

वाह्ह ! खूब सूरत उदगार हुए