सोई हुई थी आशा उसको जगा दिया
कहने को जब नहीं थे, सोहबत नसीब थी
खोजा जहाँ मैं दिल से, चेहरा दिखा दिया
ढूँढ़े जिसे निगाहें उजडा वही चमन था
देखा गुलाब सूखा लगता चिढ़ा दिया
चाहत किसे कहेंगे, तबतक समझ नही थी
जब चाहने लगे तो उसने रुला दिया
नव कोपलों के संग में कलियाँ खिले कुसुम की
खुशबू, पराग सब कुछ तुम पर लुटा दिया
-कुसुम ठाकुर-
1 comment:
वाह्ह ! खूब सूरत उदगार हुए
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