"हे रे चन्दा"
हे रे चन्दा लेने जो सनेस पिया परदेश रे..........चन्दा....।
तोहें ने उगै छ आन्हर राति
बिसरल रहै छी पिया केर पांति
तोंहे जाँ उगै छ दीया बाती दीया बाती
होइये मोन मे कलेश रे ...........चन्दा...... ।
हम्मर दुःख केयो ने बुझैया
कोना ओ रहै छथि केयो ने कहैया
कहियौन्ह विकल छैन्ह हुनकर दासी हुनकर दासी
रुसल किए छथि महेश रे ...........चन्दा....... ।
पांति हुनके आजु गाबय छी
छवि में हुनके लीन रहय छी
धैर्य नहि आब बसल उदासी बसल उदासी
नहि अछि कोनो उदेश रे...............चन्दा रे..........चन्दा
बहुत जतन सँ ह्रदय के बुझलहुं
नहि दोसर के हम किछु कहलहुं
आस बनल अछि नहि हम बिसरि नहि हम बिसरि
चाहि एतबहि, नय किछुओ बिशेष रे.........चन्दा
जहिया मँगलहुं एतबे मँगलहुं
सँग रही बस एतबे चाहलहुं
जनम भरक दुःख कही केकरा सँ कही केकरा सँ
गेलैथ ओ एहेन बिदेश रे...................चन्दा
-लल्लन प्रसाद ठाकुर-